
सदन में पेश हुई चौंकाने वाली रिपोर्ट
CAG Report Delhi ने खुलासा किया है कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण को लेकर दिल्ली सरकार का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा है। चार साल में सिर्फ 7.3% पंजीकरणों का नवीनीकरण हुआ, जबकि राष्ट्रीय औसत 74% है। यह आंकड़े 2019-20 से 2022-23 के बीच के हैं, जब राज्य में आम आदमी पार्टी सत्ता में थी।
डेटा और फंड के इस्तेमाल में गड़बड़ी
रिपोर्ट में श्रमिक डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए हैं। 6.96 लाख पंजीकृत श्रमिकों में से सिर्फ 1.98 लाख का पूरा डेटाबेस मौजूद था। तस्वीरों में डुप्लिकेशन, बिना चेहरे वाली फोटो और एक ही व्यक्ति के कई पंजीकरण मिले। कल्याण निधि का भी सही उपयोग नहीं हुआ।
अनिवार्य लाभ देने में नाकामी
राष्ट्रीय योजनाओं और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत जरूरी स्वास्थ्य और बीमा सुविधाएं लागू नहीं की गईं। 17 कल्याणकारी योजनाओं में से 5 पर एक भी रुपये खर्च नहीं हुआ। इनमें गर्भपात सहायता, घर निर्माण अग्रिम, उपकरण खरीद ऋण और बीमा पॉलिसी शामिल हैं।
पंजीकरण में गंभीर चूक
दक्षिण और उत्तर-पश्चिम जिलों में अप्रैल 2019 से मार्च 2023 के बीच उपकर जमा करने वाले 97 निजी प्रतिष्ठान पंजीकृत नहीं थे। दिल्ली अग्निशमन सेवा की वेबसाइट पर दर्ज 25 निर्माण से जुड़ी इकाइयां भी बोर्ड के पास पंजीकृत नहीं पाई गईं।
करोड़ों का हिसाब मेल नहीं खाया
मार्च 2023 तक बोर्ड के पास ₹3,579.05 करोड़ की राशि जमा थी, लेकिन उपकर संग्रह के आंकड़ों में 204.95 करोड़ का अंतर पाया गया, जिसका कोई मिलान नहीं हुआ। गलत आकलन और कम संग्रहण के मामले भी सामने आए।
भुगतान में सालों की देरी
निर्माण श्रमिकों के 58,998 बच्चों की शिक्षा के लिए 2018-19 और 2019-20 की राशि मार्च 2022 में जारी की गई। बाद के वर्षों के भुगतान सितंबर 2023 तक अटके रहे। 4,017 आवेदनों में से 134 के निपटारे में 1,423 दिन तक की देरी हुई।
केंद्र के निर्देश भी नहीं लागू
भारत सरकार के 2018 के निर्देश के बावजूद दिल्ली में श्रमिकों के लिए पारगमन आवास, मोबाइल शौचालय, शेड और क्रेच की व्यवस्था नहीं की गई। 2019-20 के बाद कोई प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं चला, जबकि उस साल सिर्फ 350 श्रमिक प्रशिक्षित हुए थे।
मुआवजे में भी विसंगति
जून 2019 में केंद्र ने आकस्मिक मृत्यु पर ₹4 लाख और प्राकृतिक मृत्यु पर ₹2 लाख मुआवजा तय किया, लेकिन दिल्ली में अब भी क्रमशः ₹2 लाख और ₹1 लाख ही दिए जा रहे हैं।
बीमा कवर में भारी कमी
दिल्ली के निर्माण श्रमिक आयुष्मान भारत योजना के तहत कवर नहीं थे, जिसमें प्रति परिवार ₹5 लाख का बीमा मिलता है। इसके बजाय वे सिर्फ ₹10,000 तक की चिकित्सा सहायता के हकदार थे।
निरीक्षण तक नहीं हुआ
पूरी ऑडिट अवधि में श्रम विभाग या औद्योगिक सुरक्षा निदेशालय ने निर्माण स्थलों का कोई निरीक्षण नहीं किया, जिससे नियमों के अनुपालन पर सवाल खड़े होते हैं।