📰 Civil Judge Experience Rule: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी सबकी निगाहें
⚖️ 3 साल का अनुभव… लेकिन क्या ये ज़रूरी है?
Civil Judge Experience Rule को लेकर देशभर के कैंडिडेट्स के मन में सवालों का तूफान है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, लेकिन सस्पेंस अभी खत्म नहीं हुआ।
🕰️ न्यायपालिका में प्रवेश या प्रतीक्षा?
सवाल है—क्या सिविल जज के पद के लिए तीन साल का वकालत का अनुभव अनिवार्य होगा? इस शर्त को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, लेकिन अंतिम निर्णय अभी तक नहीं सुनाया गया है।
📌 कहाँ से शुरू हुआ विवाद?
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब कुछ राज्यों ने Civil Judge Recruitment में 3 साल के अनुभव को अनिवार्य बना दिया। इसके खिलाफ याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें कहा गया कि ये नियम प्रतिभाशाली नए स्नातकों के लिए बाधा बन रहा है।
🔍 क्या कहती हैं याचिकाएं?
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन हो रहा है। उनका कहना है कि अगर कोई एलएलबी पास उम्मीदवार परीक्षा में सफल होता है, तो उससे अनुभव की मांग क्यों की जा रही है?
🏛️ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और रुख
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह एक नीति का मामला है और सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन संविधानिक मूल्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
📅 अब अगला कदम?
अब लाखों उम्मीदवारों की नज़र सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय पर टिकी है। ये फैसला यह तय करेगा कि आने वाले वर्षों में Civil Judge बनने की राह आसान होगी या पहले से ज़्यादा चुनौतीपूर्ण।
🧭 निष्कर्ष: उम्मीदें और अनिश्चितताएं
Civil Judge Experience Rule के तहत अनुभव की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ऐतिहासिक हो सकता है। क्या यह नियम बना रहेगा या हटाया जाएगा—इस पर सस्पेंस बना हुआ है।











